Hawa ke bin kuch pal jee leta mae
Tumhare bina damm ghut gaya hota
Samandar hota faqat bahar se mae
Andar se sookh gaya hota
Dikhne mei kaaroon ka khazana lagta mae
Par zarra zarra lutt gaya hota
Milta nahi tumhara saath mujhe agar
To kaanch ki tarah toot gaya hota
हवा के बिन कुछ पल जी लेता मए
तुम्हारे बिना दम्म घुट गया होता
समंदर होता फ़क़त बहार से मए
अंदर से सूख गया होता
दिखने में कारून का खज़ाना लगता में
पर ज़र्रा ज़र्रा लूट गया होता
मिलता नहीं तुम्हारा साथ मुझे अगर
तो कांच की तरह टूट गया होता
written by Mustafiz
For image of the above shayari, Click HERE
Tumhare bina damm ghut gaya hota
Samandar hota faqat bahar se mae
Andar se sookh gaya hota
Dikhne mei kaaroon ka khazana lagta mae
Par zarra zarra lutt gaya hota
Milta nahi tumhara saath mujhe agar
To kaanch ki tarah toot gaya hota
हवा के बिन कुछ पल जी लेता मए
तुम्हारे बिना दम्म घुट गया होता
समंदर होता फ़क़त बहार से मए
अंदर से सूख गया होता
दिखने में कारून का खज़ाना लगता में
पर ज़र्रा ज़र्रा लूट गया होता
मिलता नहीं तुम्हारा साथ मुझे अगर
तो कांच की तरह टूट गया होता
written by Mustafiz
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